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Hindi Poem: घर की दीवारें: The Deaf walls
Hindi Poem: घर की दीवारें: The Deaf walls
मेरे घर की दीवारों के कान नहीं है ,
अंदर-बाहर की बातें, उन्हें सुनती नहीं।चीखें, सिमट कर रह जाती है, भीतर मन में कहीं ,
पड़ोस तक उनकी भनक, जाती नहीं ।
दर्द हमारे, आपस में एक दूसरे को सहला लेते हैं ,
आसूं, आंखों से गिर, तकियों में जा, सो जाते हैं,घरवाले मेरे बतियाते ही हैं इतना कम,
की आइने को भी उनकी शिकन दिखलाती नहीं ।
एक वक्त था जो बीत चुका है, दीवार पर लगी घड़ी वो कहती है रोज़,
मगर मेरे घरवालों की आंखें उस बात को अपनाती नहीं ।हम लोग,
एक घर में,
यूं रहते हैं,की लगता है,
शायद,
उन दीवारों के कान तो है बेशक,
मगर उन्हें सुनाने को,
हम लोगों के पास,
कोई बातें नहीं ।Written by @ramtajogi
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Hindi Poetry: Bhg Ja: Childish Poem: ramtajogi. co. in
Bhg Ja
मेरी किसी कहानी के
कोई किस्से में,
अगर किन्हीं पन्नों के बीच,
तुम्हें तुम जैसा कोई किरदार,
नजर आए,
मगर,
यकीन ना हो पाए,
की वो तुम ही हो या नहीं,
तो पन्नों को आगे पीछे ,
टटोल मटोल कर देखना,
अगर कहीं
किसी कोने में ,
“भग जा”
लिखा नजर है आए,
तो खुदके चहरे की
हसीं देख,
समज जाना,
तुम ही हो।Written by @ramtajogi
Image courtesy: Freepik
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Hindi Poetry: Ishq Be-parwah: ramtajogi.co.in
Ishq Be-parwah
प्यार खुल कर वो दिखाता नहीं है,
और अपने अंदर छुपाता भी नहीं हैशायरी लिख, करता है तारीफ मेरी,
आंखों से मगर जता ता भी नहीं है।बिन मौसम बारिश सा है, महबूब मेरा,
धूप में बरसता है, भिगाता भी नहीं है ।खयाल में हूं में उसके,
ये तो मालूम हैं मुझे,इश्क को ख्याल में ही रखता है,
हकीकत में लाता भी नहीं है ।प्यार खुल कर वो दिखाता नहीं है,
और अपने अंदर छुपाता भी नहीं हैWritten by @ramtajogi
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Unrequited Love l Hindi Poem l ramtajogi.co.in
Hindi Poetry l Unrequited Love l ramtajogi.co.in
चल किसी कहानी का
एक पन्ना लिखते हैं
और उसे वहीं,
उस पन्ने की
आखिरी लकीर पर
लाकर,
अधूरा,
खुला
छोड़ देते हैं ।जो उसे
जब पढ़ेगा,
उस कहानी को ,
अपनी जबान में,
अपनी सोच से,
अपने आप जैसी बना लेगा,
और खुश रहेगा ।@ramtajogi
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The relationship in the times of Social Media: Hindi Poetry: ramtajogi.co.in
The relationship in the times of Social Media
वो एक घर के,
दो कमरों में,
दो चेहरों की आंखों में,
झलक रही है ,
फोन की स्क्रीन,
की जिसमे चल रहा है,
एक नाटक,
जो की तुमको,
तुम्हारी ही कहानी से,
दूर लेके कहीं जा रहा है।की जिसमे भ्रम दिखाया जा रहा है,
की है ये दुनिया खुश बहोत,की जिसमे दर्द बांटा जा रहा है ,
की है ये सब विनाश की और,वो दो चेहरे,
हर दर्द की खबर को नकार के,
उसे अफवाह मान, स्वीकार के,
उन खुश चेहरों में अपनी नाकामी ढूंढते है ,
“लाइक” कर उन तस्वीरों को,
खुद को ” अनलाइक” करते घूमते है ,इस फोन की दुनिया से लौटेकर जब,
वो हकीकत में आते है,
थकी इन आंखों को आराम देने,
फिर आंखें मूंद सो जाते है,
इसी बहाने,
एक भ्रम से दूजे सपने में
वो दोनो चेहरे खो जाते है,वो एक कमरे के दो चेहरे,
एक दूजे को देखना,कहीं भूल गए हैं।
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