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    POETRY

    Hindi Poetry – ये शाम मस्तानी – An Evening to Remember l Nostalgia l Memories l Love

    ये शाम मस्तानी – An Evening to Remember l Nostalgia l Memories

    वो मद्धम सी रोशनी से,
    सजी सर्द सांजे,
    वो घरौंदे में अपने,
    एक महफिल सजाना,

    वो अलाव के चारों ओर,
    जाम थामे,
    वो रंगीन चिरागों का,
    झूमर लगाना,
    वो अपनों का अपनों के,
    करीब आकर,
    वो गिले शिकवों को याद कराना,
    फिर, ढलते सूरज की तरह, जसबात ढालके

    भूलाने के उनको, वो वादे करना,
    बीत गया एक अरसा,
    जो बिन मिले,
    उस अरसे को,
    कुछ घंटों में,
    फिर हासिल करना,

    लगें है सब,
    दिल के प्यालों को भरने,
    अपनी यादों को,
    जाम से बयान करने,

    वो छठ पर बैठे,
    मोर का कुहकना,
    वो धीमी सी धुन पर,
    कोई गीत बजाना,

    वो सुनाऊं मैं तुमको,
    अपनी कोई शायरी,
    सुनके उसे तुम,
    मेरा कोई शेर गुन गुनाना,
    क्या चाइए हमे इस से बेहतर कोई शामें,
    जहां हम तुम,
    यूंही,
    एक गजल हो जाएं ।

    By Ramta Jogi

    Image Courtesy: Stock Photos

  • Pic Courtesy: Google Saas- Bahu
    POETRY

    Hindi Poetry l Saas- Bahu l सास बहू l Relationship

    सास बहू

    घर है मांझी, मंजिल किनारा,
    सास बहू , वो नाव, पतवार,
    कैसे पहुंचे वो मांझी, किनारे,
    नाव पतवार पर सब दारमदार ।

    मां की छाया, ढूंढे सास में,
    मां की डांट, मगर ना कड़वी लगे,
    सास जो अपनाए, सख्ती थोड़ी,
    वो मां जैसी, उसे ना अपनी लगे।

    बिटिया बुलाए, वो सास बहू को,
    बिटिया की याद मगर वो दिलाए नहीं ।
    जननी जिसकी वो सास, उसकी कई गलतियां माफ़,
    बहु की अक्सर वो ४ गलतियां भी चलाए नहीं ।

    खुश हो दिल से, वो सास बहू से,
    चेहरे पर वो खुशी, नजर आए नहीं ।
    बहू ढूंढे अपनापन शब्दों में,
    वो सास का प्यार, उसे समझाए नहीं ।

    माने मां सी, वो बहू सास को,
    बिटिया सी वो टोके,
    “बहू ने टोका तो टोका केसे?”
    मां में सास वो फिर लौट आए ।

    एक थाली में सजी हुई,
    ये एक चमच और कटोरी है,
    खनके तो शोर करे ये,
    मगर अक्सर परोसे ये खीर पूरी है,
    बिखरे नहीं उस थाली में कुछ,
    इस लिए, इनका संग होना जरूरी है ।

    सास बहू का अपना होना,
    सास बहू का सपना है,
    जो मानो तो ये अपना है,
    ना मानो तो ये सपना है ।

    Written by @ramtajogi

    Image Courtesy: Hindustan Times

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    POETRY

    Hindi Poetry: बेवफाई :Infidelity: The Shade of Love

    Hindi Poetry: बेवफाई: Infidelity

    हो वजह से ये,
    तो फिर फरेब क्यों?
    जो हो बे वजह,
    तो फिर इसकी सज़ा है क्या?
    नैनों में भरे, जो कोई इश्क की नजर,
    और लभों पर हो, किसी और रिश्ते की ज़बान,
    इस एक काया में इंसान की,
    जो हर एक अंग करे, अपना फैसला,
    तो फिर एक रिश्ता हो स्वीकार क्यों?
    और दूजा रहे क्यों गुमशुदा?

    अगर बात हो जज़्बात की,
    इश्क के हालत की,
    डोर ७ फेरों की,
    जब नर्म सी पड़ जाए,
    एक दूजे के भीतर जब,
    एक दूजा न मिल पाए,
    होठों की हसी से हटकर,
    लकीरें, चेहरे की शिकन बन जाए,
    बिस्तर पर न हो सिलव्वतें कोई,
    चादर भी जब कोई कहानी न कह पाए
    बहक जाने की नीव जब,
    घर के भीतर ही रख दी जाए,
    तो बेवफाई पर हो एतराज क्यों?
    और रहे जो कोई वफादार,
    तो फिर इसकी वजह है क्या?

    वफा जब एक इश्क पर,
    सीमित न रह पाए,
    आशिकी की गलियों में,
    जब बे वजह टहला जाए,
    डोर में पुरानी गांठ खोले बिन,
    कई नए धागे जोड़े जाएं
    न हो राबता किसी एक हुस्न, जिस्म या रूह से,
    वास्ता मगर हर चेहरे से किया जाए,
    जब दिल के कमरों से होकर,
    घर का रास्ता न मिल पाए,
    हर मुंडेर पर जब,
    किराए के मकानों में रहना ही समझ आए,

    इस स्वभाव से फिर हो लगाव क्यों?
    और हो कोई सजा इसकी, तो गलत है क्या?

    बे वफाई के नियम तय करें कौन?
    वफा के कसीदे कौन समझाए?
    जब रिश्तों की मर्यादा लांघे बिन,
    सोच में कोई और समा जाए ।

    वजह तो होगी बहोत सी उसके पास,
    मगर क्या किसी वजह को समझा जाए ?

    बात जसबतों की जब होती है,
    रिश्ते रहते है महफूज नजरों में सभी के,
    मगर आंखें कुछ और कहती हैं ।

    जिसको जो समझ आता है,
    वो अपने नियम बनाता है,

    हो कोई इंसान सच्चा अगर,
    तो एक रिश्ते को चलाने में ही,
    वो उम्र भर टूट जाता है ।

    Written by @ramtajogi

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  • Gate Pic Courtesy: rhythum-soni
    POETRY

    Hindi Poem: घर की दीवारें: The Deaf walls

    Hindi Poem: घर की दीवारें: The Deaf walls

    मेरे घर की दीवारों के कान नहीं है ,
    अंदर-बाहर की बातें, उन्हें सुनती नहीं।

    चीखें, सिमट कर रह जाती है, भीतर मन में कहीं ,
    पड़ोस तक उनकी भनक, जाती नहीं ।
    दर्द हमारे, आपस में एक दूसरे को सहला लेते हैं ,
    आसूं, आंखों से गिर, तकियों में जा, सो जाते हैं,

    घरवाले मेरे बतियाते ही हैं इतना कम,
    की आइने को भी उनकी शिकन दिखलाती नहीं ।


    एक वक्त था जो बीत चुका है, दीवार पर लगी घड़ी वो कहती है रोज़,
    मगर मेरे घरवालों की आंखें उस बात को अपनाती नहीं ।

    हम लोग,
    एक घर में,
    यूं रहते हैं,

    की लगता है,

    शायद,
    उन दीवारों के कान तो है बेशक,
    मगर उन्हें सुनाने को,
    हम लोगों के पास,
    कोई बातें नहीं ।

    Written by @ramtajogi

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  • Cute girl: Bhg Ja
    POETRY

    Hindi Poetry: Bhg Ja: Childish Poem: ramtajogi. co. in

    Bhg Ja

    मेरी किसी कहानी के
    कोई किस्से में,
    अगर किन्हीं पन्नों के बीच,
    तुम्हें तुम जैसा कोई किरदार,
    नजर आए,
    मगर,
    यकीन ना हो पाए,
    की वो तुम ही हो या नहीं,
    तो पन्नों को आगे पीछे ,
    टटोल मटोल कर देखना,
    अगर कहीं
    किसी कोने में ,
    “भग जा”
    लिखा नजर है आए,
    तो खुदके चहरे की
    हसीं देख,
    समज जाना,
    तुम ही हो।

    Written by @ramtajogi

    Image courtesy: Freepik

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