Taala | Hindi Poetry
Taala | Hindi Poetry
हुआ अचानक ये क्या !!
हक्के बक्के रह गए सारे,
नज़र पड़ी जब किवाड़ों पर ,
देखा, मंदिर मस्जिद गिरिजा घर पर,
लगे हुए थे ताले.
बाहर रखा घंट ले गया बनिया ,
शंख डाकिये के हाथ आया ,
पीर की चादर दिखी, पनवाड़ी की दुकान पे ,
इसाह की मूरत का धागा , धोबी के गले में पाया ,
मंदिर का आँगन मिला कुत्तों को ,
और दीवारों पे कबूतर ने अपना बसेरा बनाया ,
अचंभित तो हुए सब, तब, जब ,
पंडित , इमाम और ग्रंथि को ,
एक अछूत के यहाँ नौकरी करते पाया.
दही , दूध , मिठाई की अब ,
थाली भरी पड़ी थी ,
पैसे , फूल , और भोग लिए ,
भीड़ द्वार पर खडी थी ,
कौन खोले पट वहां के ,
कौन आगे बढ़कर अंदर जाये ,
ताला देख कर डरे हुए सब ,
खुदा को भी आज गैर बनाये ,
रख कर थाली , बढा घर की और ,
वो मास्टर , नौकरी, जाने वाला,
पीछे चले सब के सब ,
सीढ़ियों पर लग गया, थालियों का काफिला ,
दूर देख इस दृश्य को ,
एक बूढा भिकारी मुस्काया
हिम्मत जूठा कर पैरों में ,
वो थाली की और आया ,
देख उसे दूध पिते ,
उन गरीब बच्चों का मन भी ललचाया ,
धीरे धीरे , दही , भोग पर , पड़ा उनकी भूक का साया
“आज खाकर पेट भरा है !! ”,
वो नन्हा भूखा चिलाया ,
देख इन्हें खाते , वो भीड़ थम गई ,
भक्तों की वो आँखें , आज नम गई ,
समज आया , आज उन्हें भी ,
सच्चा भोग किसे कहते है ,
देख ख़ुशी उन भूखी आँखों में ,
आज उनको भी दुआ लग गई .
दूजे दिन से अब वहां ,
कोई जाती न भेद है कोई ,
सब का भगवान् , उन्ही की सोच ,
मूरत से तो निषेद होइ,
प्यार दया और करुणा से
अब लोग वहां पर जीते है ,
हिन्दू कौन ? कौन है मुस्लिम ?
कोई कभी न कहते है ,
कोई न अब भूका सोता ,
न कोई मज़बूरी में रोता ,
जिसके पास है जितना वो ,
बाँट के खाता , खुश होता ,
सब कुछ खो चुके हम, एक इंसानियत को लाने में ,
एक ताले की बात थी यारों , सदियाँ लगी समजने मैं.”
@ramta jogi
*********************************
Connect to us @
For more poetry, @ Ramta Jogi Poetry