लिखना |Hindi Poetry
लिखना | Hindi Poetry
अब लिखना विखना बंध हुआ ,
वो सपने दिखना बंध हुआ ,
कागज़ , कलम से जो होती थी ,
उन चर्चाओं का अंत हुआ ।
अब लिखना विखना बंद हुआ ।
वो सोच सोई दूर कमरे में जाकर ,
शब्द ढूंढे उसे गांव भर फिरकर ,
मिलके जो सेकते दोनों, यादों की रोटी ,
वो रोटी खाना अब दुर्लभ हुआ ।
अब लिखना विखना बंद हुआ ।
अब किसी की कमी नहीं खलती ,
वो जो था दर्द , अब नर्म हुआ ।
किसी चेहरे को देख , अब हसीं नहीं खिलती ,
ख़ुशी का जो भाव था ,अब कम हुआ ।
एहसास जो टहला करता था ,
गली , मुहल्लों और दुकानों में ,
उसका अब चौबारों से निकलना ख़त्म हुआ ।
अब लिखना विखना बंद हुआ ।
ख़त्म हुई अब जुस्तजू ,
ख़त्म हुई अब बेचैनी ,
ख़त्म हुई वो नोक जोक खुदसे ,
ख़त्म हुई वो गलतफैमी ,
वो असमंजस में फिरती रूह का ,
किस्से कहानियों से अब रिश्ता ख़त्म हुआ ।
अब लिखना विखना बंद हुआ ।
@ramta jogi
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