Aparichit | Hindi Poetry
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Aparichit | Hindi Poetry

Aparichit | Hindi Poetry

वो बाज़ारों में भीड़,
वो गलियां भरी हुई है । 
चार रस्ते पर रुके हुए,
 निग़ाहें खड़ी हुई है।
थका हारा , बे सहारा ,
 हर इंसान चला जा रहा है,
उम्मीद में, हौसले से
वो आगे बढ़ा जा रहा हैन ही रुकना वो चाहता है,
 न थकना वो चाहता है,
बिन मंज़िल के और बिन रास्तों  के,
 वो सबको आईना दिखा रहा है


देख ता वो आस पास 
 हर सूरत हताश है
हँसी है चेहरे पे
 दिल से बड़े ही नाराज़ हैजान चुकी है दुनिया सबको
 खुद को जान ने में न ज़रा भी मौह है
भीड़ में होकर
भीड़ के भी नहीं हो पाटे
खोई कहीँ और ही उनकी रूह है
सोचते है कुछ 
कुछ और ही करते है
अंदर रखते है कुछ
कुछ और ही कहते हैचाहते हैं कुछ और


पाने को कुछ और ही दौड़ रहे है
बिन वजह ही अपने जीवन में
अंचाए मौड़ ले रहे है
भूले नहीं है खुद को समझाना
पर समझाना चाहते नहीं है
अपने आप को बता सकते है सब
पर कुछ भी बताते नहीं हैमुखोटा चेहरे पे नहीं
अपने अंदर डाल रखे है
भाग रहे ये दुनिया से नहीं
ये तो खुद से ही भाग रहे है
अनगिनत शोरों में
ये अपनी आवाज़ खो गए है
न हुआ खुद के न किसी और के
बिन मंज़िल बिन रास्तों के
ये तो अपने आप से ही दूर हो गए है।
                                        —————- @ramta Jogi

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