J.N.U.
Views on JNU Incident
मैं ना-समज ही सही ,
मगर बुज़दिली में भी, समझदारी नहीं !!
होंगे कुछ गुन्हेगार वहां,
मैं नहीं जानता !!
जानता हूँ मैं मगर ,
वहां बे -कसूर ज़रूर थे,
आवाज़ उठाने की ,
थी उन्हें आज़ादी ,
ऐसा सुना था मैने,
मगर ,
आवाज़ दबाने की ,
दावेदारी नहीं थी तुम्हारी ,
ऐसा पढ़ा था मैने
डंडे बरसाए तुमने ,
घर तोड़े !!
विद्या के आँगन में ,
समझदारी के नियम तोड़े !!
मैं मानता था तुम्हे ,
सच्ची नहीं मगर अच्छी सरकार ,
न लोगों के ख़याल सुने !!
मैंने इस लिए न पढ़े अख़बार ,
मगर खून से लतपत चेहरे ,
वो रोते हुए घाव गहरे ,
वो सहमी डरी आवाज़ ,
वो आज़ादी खोने का आभास ,
मुझे समज आ गया ,
सच क्या है ,
मैं नासमज ही सही ,
मगर ये ज़रूर समज चूका हूँ ,
होंगे कुछ गुन्हेगार वहां ,
मैं नहीं जानता,
मगर ये जान चूका हूँ ,
जो बहार से अंदर गए थे ,
वो सबसे बड़े गुन्हेगार थे
(This Poem is on the mob thrashing that happened in JNU campus)
By Ramta Jogi
4 Comments
Amjad
Great sir
ramtajogi
Thank You 🙂
Aakanksha
Beautiful!
ramtajogi
Thank you 🙂