Hindi Poetry l Saas- Bahu l सास बहू l Relationship
सास बहू
घर है मांझी, मंजिल किनारा,
सास बहू , वो नाव, पतवार,
कैसे पहुंचे वो मांझी, किनारे,
नाव पतवार पर सब दारमदार ।
मां की छाया, ढूंढे सास में,
मां की डांट, मगर ना कड़वी लगे,
सास जो अपनाए, सख्ती थोड़ी,
वो मां जैसी, उसे ना अपनी लगे।
बिटिया बुलाए, वो सास बहू को,
बिटिया की याद मगर वो दिलाए नहीं ।
जननी जिसकी वो सास, उसकी कई गलतियां माफ़,
बहु की अक्सर वो ४ गलतियां भी चलाए नहीं ।
खुश हो दिल से, वो सास बहू से,
चेहरे पर वो खुशी, नजर आए नहीं ।
बहू ढूंढे अपनापन शब्दों में,
वो सास का प्यार, उसे समझाए नहीं ।
माने मां सी, वो बहू सास को,
बिटिया सी वो टोके,
“बहू ने टोका तो टोका केसे?”
मां में सास वो फिर लौट आए ।
एक थाली में सजी हुई,
ये एक चमच और कटोरी है,
खनके तो शोर करे ये,
मगर अक्सर परोसे ये खीर पूरी है,
बिखरे नहीं उस थाली में कुछ,
इस लिए, इनका संग होना जरूरी है ।
सास बहू का अपना होना,
सास बहू का सपना है,
जो मानो तो ये अपना है,
ना मानो तो ये सपना है ।
Written by @ramtajogi
Image Courtesy: Hindustan Times