Hindi Poem: घर की दीवारें: The Deaf walls
Hindi Poem: घर की दीवारें: The Deaf walls
मेरे घर की दीवारों के कान नहीं है ,
अंदर-बाहर की बातें, उन्हें सुनती नहीं।
चीखें, सिमट कर रह जाती है, भीतर मन में कहीं ,
पड़ोस तक उनकी भनक, जाती नहीं ।
दर्द हमारे, आपस में एक दूसरे को सहला लेते हैं ,
आसूं, आंखों से गिर, तकियों में जा, सो जाते हैं,
घरवाले मेरे बतियाते ही हैं इतना कम,
की आइने को भी उनकी शिकन दिखलाती नहीं ।
एक वक्त था जो बीत चुका है, दीवार पर लगी घड़ी वो कहती है रोज़,
मगर मेरे घरवालों की आंखें उस बात को अपनाती नहीं ।
हम लोग,
एक घर में,
यूं रहते हैं,
की लगता है,
शायद,
उन दीवारों के कान तो है बेशक,
मगर उन्हें सुनाने को,
हम लोगों के पास,
कोई बातें नहीं ।
Written by @ramtajogi
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