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    POETRY

    Poem: पिशाच (Pishach) !!

    Poem : Bhoot – Pishach (Ghost)

    पिशाच !! by Ramta Jogi

    वो शाम के 7 बजे , कलम मेरी थम जाती है ,
    पूजा करने माँ जब मेरे, कमरे में आजा ती है ,
    नादाँ मैं !! इस खलल को,समाज कभी न पाया ,
    क्यों लिखा जो किरदार उस वक़्त ,वो रहा अधूरा साया ?

    फिर देर रात एक अंजनी खनक सुनाई देती है ,
    कानो को मेरे, कुछ लोगों की आवाज़ सुनाई देती है,
    धीमे धीमे इन शोरों से नींद मेरी उड़ जाती है
    आँख खुलते ही नज़र मेरी ,
    खिड़की से कोठरी की और जाती है ,

    माँ कहती है उसमे एक बूढी औरत रहती थी ,
    करती घर का काम वो दिन में, रात को उस में सोती थी,
    करते करते काम वो एक दिन, खुदा को प्यारी हो गयी,
    गयी जबसे वो छोड़ , ये कोठरी पराई हो गयी

    भईया कहते है उस खंडर में एक खौफ छुपा रहता है ,
    जाता नहीं कोई वहां, एक डर बना रहता है
    मुझको भी जाने की सख्त मनाई है उस खंडर में
    न जाने वहां ऐसा तो कौनसा बवंडर दबा रहता है ……

    सो रहे हैं घर के सब , किसी को कुछ भी खबर नहीं
    बीच्च रात्रि की इन गुंजो का, किसी पे कोई असर नहीं !!
    कदम तड़पते हैं मेरे , उठकर वहां जाने को ,
    उस आवाज़ को पहचान ने को, उन चेहरों को जान ने को

    2 कमरे छोड़, एक मंदिर को रास्ता जाता है ,
    मंदिर के पीछे से उस कोठरी का दरवाज़ा आता है

    घबराते घबराते मेरे कदम उस और बढ़ते है ,
    वो सिसकियाँ भरे सनाटे ,
    हवा में और डर पैदा करते है ,
    रात की चादर ओढ़े उस लांटेन संग ,
    मेरा साया भी मेरा पीछा करता है ,
    जैसे जैसे मैं आगे बढ़ूँ,
    अपने साये से भी डर लगता है
    धड़कने तेज़ होते होते ,
    मेरी आहटों से मिल सी जाती है ,
    कुछ कहना चाहती है ये ख़ामोशी , \
    मगर कुछ कह नहीं पाती है

    किवाड़ पे पहुँच जाते ही,अँधेरा और बढ़ जाता है ,
    साया खो जाता है ,लांटेन बुज जाता है ,
    खोल किवाड़ मैं अँधेरे में उस कुटिया को घूरता हूँ
    माचिस से लांटेन चलाके,
    उन आवाज़ों को ताकता हूँ ,

    अनजान उन चेहरों को देख, निशब्द हो जाता हूँ
    चीख अंदर दबी रहती है,अपनी ज़बान खोयी सी पाता हूँ ,

    एक बूढी औरत है वहां, जो जानी पेहचानी लगती है ,
    माँ जैसे सुनती थी, बिलकुल वैसी दिखती है ,
    उसके साथ बैठे लोग ,
    मेरी अधूरी कहानी के किरदार से लगते है ,
    वो रिक्शा वाला, वो पनवाड़ी ,
    वो दुब के मर गए थे जो बच्चे ,
    जैसे मैने सोचे थे, ये चेहरे वैसे लगते है ,

    डरे हुए है वो चेहरे अब
    चीखने को तत्पर है ,
    ये वो भूत – पिचाश, हम कहते जिनको ,
    इन चेहरों पे तो उल्टा डर है
    श्याद ये मरे हुए लोग ,
    डराते नहीं ,
    अँधेरे से खुद डरते है ,
    भटक ते है घर घर
    अपने अंत को तरसते हैं
    खुद को दूर भगाने को ,अपनी कहानी ख़त्म कराने को
    ये इंसान की ओर आते है ,
    डरता देख इंसान को, फिर
    ये चीख़ते हैं चिल्लाते हैं ,

    अब मैं जीवित और ये मृत ,
    चेहरे एक दूजे के ताकते हैं ,
    मेरी कहानी से ही होगी ,
    इनकी कहानी ख़त्म और पूरी ,
    आँखों से ये कहते मुझको ,
    चेहरे से बतियाते हैं ,
    छोडे जो किरदार अधूरे ,
    कल उनको पूरा करना होगा ,
    भुत पिचाश ये हमारे जीवन के ,
    अपना अंत हम से मांगते है

    @ रमता जोगी

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