• Amrita Pritam
    POETRY

    Hindi Poetry: Mein tumhe fir milungi: Amrita Pritam’s: Ramta Jogi version

    Mein tumhe fir milungi”: Amrita Pritam’s: Ramta Jogi version

    मैं तुम्हें फिर मिलूंगी,
    कब, कहां मालूम नहीं
    शायद तुम्हारी गजलों की वजह बनकर,
    तुम्हारे शेरों में नजर आऊंगी,
    या तुम्हारे किस्सों का स्रोत बनकर,
    तुम्हारी कहानी बन जाऊंगी।
    या तुम्हारी ज़बान का लहजा बनूंगी मैं,
    जिसमे तुम शेर फरमाओगे
    में तुम्हें फिर मिलूंगी
    कब, कहां, मालूम नहीं।

    मैं तुम्हारी कलम की स्याही बनूंगी शायद,
    और तुम्हारे पन्नों पर उतर जाऊंगी ।
    या तुम्हारी मेज पर रखी किताब का,
    हर एक पन्ना बन जाऊंगी ।
    तुम लिखोगे मुझे, मुझमें
    में तुम्हारे हर शब्द की लिखावट बन जाऊंगी ।
    मैं तुम्हें फिर मिलूंगी,
    कब, कहां मालूम नहीं

    और कुछ मालूम न हो,
    मगर ये जानती हूं मैं,
    मैं तुम्हारे खयालों का वो अंश हूं,
    जिस से तुमने एक उम्मीद बांधी है,
    दर्द की,
    मैं वो दर्द बन, तुम में रह जाऊंगी कहीं,
    तुम्हारी हर एक लिखाई के अंत का,
    एक अल्प विराम बन जाऊंगी मैं,
    जो तुम्हें महसूस करवा दे,
    की
    मुझे लिख तो चुके हो तुम,
    मगर मैं कहानी आज भी अधूरी हुं,
    तुम्हारे लिए,
    मैं तुम्हें फिर मिलूंगी,
    कब, कहां मालूम नहीं

    @ramtajogi

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    Mein tumhe fir milungi: Amrita Pritam’s: Ramta Jogi

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