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    POETRY

    Hindi Poem: मेरा गांव मेरा देश

    मेरा गांव मेरा देश by Ramta Jogi #Lockdown

    मेरा शहर आज-कल मेरे गांव सा लगता है,
    सड़कें खाली, गलियां सुनसान,
    बिखरे पत्ते,राह में 1-2 इंसान,
    मेरा शहर भी मेरे गावं की तरह,
    न जाने क्यों हो गया वीरान ?

    सूरज की किरणे अब चुबती कहाँ है ?
    सांज के साये अब कहाँ रास आते हैं ?
    वो रोड पे जलते खम्बे,
    अब कहाँ किसी को राह दिखते हैं ?

    उगते है दिन जल्दी बड़े,
    बड़े देर से ढल जाते है,
    वो पेड़ तले बैठ के होती थी जो बाज़ियां,
    वो ताश के पत्ते अपनी छतों पे खेलते नज़र आते है ,
    तारीखों का ख्याल कहाँ
    हफ्ते, 1 दिन सामान बीत जाते हैं

    शब्द भूले जा रहे?
    सपने सपनों में व्याकुल है,
    आवाज़ गले से कर रही खलल ,
    न जाने ये केसा माहौल है ?

    जब गौर से देखा, तो समजा ,
    ये शहर लगता है तो मेरे गांव सा ,
    मगर है मेरा गावं नहीं !!

    मेरे गावं में एकांत है, तन्हाई कहाँ ?
    उसकी ख़ामोशी भी अक्सर, मीठे सुर सजाती हैं,
    कड़क धुप में, उड़ती रेत भी,
    एक इतर की खुसबू छोडे जाती है.

    खाली सड़कें, गिने चुने लोग ,
    खुद की आज़ादी में खुश हैं !!
    वीरानीयत लगती है जो शहरों को ,
    उन बातों का मेरे गावं को कहाँ दुःख है !!

    मेरा शहर इस सादगी से अंजान है
    अपनी तन्हाई का ये एक लौता मेहमान है,
    इसे खुद में रह के जीने की आदत कहाँ ,
    खुद से रहता हैं मायूस अक्सर,
    ये लोगों के शोर गुल से ही तो जवान है

    मेरा गावं वो बूढ़ा बाप है ,
    जो बच्चे को विलायत भेज के ,
    चैन की नींद सो रहा,

    मेरा शहर वो बच्चा हैं,
    जो अकेले,
    तनहा रो रहा

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    #Curfew #Lockdown #Gaon #Desh

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