• POETRY

    J.N.U.

    Views on JNU Incident

    मैं ना-समज ही सही ,
    मगर बुज़दिली में भी, समझदारी नहीं !!

    होंगे कुछ गुन्हेगार वहां,
    मैं नहीं जानता !!
    जानता हूँ मैं मगर ,
    वहां बे -कसूर ज़रूर थे,

    आवाज़ उठाने की ,
    थी उन्हें आज़ादी ,
    ऐसा सुना था मैने,
    मगर ,
    आवाज़ दबाने की ,
    दावेदारी नहीं थी तुम्हारी ,
    ऐसा पढ़ा था मैने

    डंडे बरसाए तुमने ,
    घर तोड़े !!
    विद्या के आँगन में ,
    समझदारी के नियम तोड़े !!

    मैं मानता था तुम्हे ,
    सच्ची नहीं मगर अच्छी सरकार ,
    न लोगों के ख़याल सुने !!
    मैंने इस लिए न पढ़े अख़बार ,

    मगर खून से लतपत चेहरे ,
    वो रोते हुए घाव गहरे ,
    वो सहमी डरी आवाज़ ,
    वो आज़ादी खोने का आभास ,
    मुझे समज आ गया ,
    सच क्या है ,

    मैं नासमज ही सही ,
    मगर ये ज़रूर समज चूका हूँ ,

    होंगे कुछ गुन्हेगार वहां ,
    मैं नहीं जानता,
    मगर ये जान चूका हूँ ,
    जो बहार से अंदर गए थे ,
    वो सबसे बड़े गुन्हेगार थे

    (This Poem is on the mob thrashing that happened in JNU campus)

    By Ramta Jogi

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